परिवर्त प्रकॄति भी चाहती है,
परिवर्तन समाज को प्यारा है!
दुनिया के संबिधानों मे देखो,
अपना संबिधान तो न्यारा है!!
इस तेजी से बदलती दुनिया मे,
अपने संबिधान में संसोधन जरुरी है!
इस बढ़ते हुए समीकरण मे,
संसोधन करना मज़बूरी है!!
संबिधान के मूल-भूत ढ़ाचे से,
कोई खिलवाड़ नही किया जाए!
वोटों की राजनीति से हटकर,
उचित बदलाव किया जाए!!
ऐसे नेक कार्यों मे ,
लोगों का विचार सुनना होगा!
आरोप-प्रत्यारोप से बचकर,
अपने संबिधान को परखना होगा!!
मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-१६/०२/२०००,वुद्धवार,सुबह- १०.४५ बजे
चंद्रपुर(महाराष्ट्र)