जब तक सम्मान नही देंगे हम नारी को,
तब-तब वे सती होती जाएंगी!
नफ़रत से देखते हम विधवा को,
वे ऐसे हि तन को आग लगाएंगी!!
सामाजिक रूढिवादीता को देख-देख कर,
वे भय से विचलित हो जाती हैं!
भावी जीवन का सामाजिक छुआ-छूत,
वे यह सोच के आग लगाती हैं!!
विधवा हो गईं,तो इसमे कसूर किसका,
जिसका विधि ने सब कुछ लूट लिया!
अन्याय व अत्याचार हम उनपे करते,
जैसे हमने यहां हो अमॄत का घूंट पिया!!
हमें उन विधवा व बे-सहारों को,
समाज मे ईज्जत व सम्मान दिलाना होगा!
उनके साहस व आत्म बल का बोध ,
पग-पग पर हमे कराना होगा!!
तुम मज़बूर नही, कटार हो तुम,
तुम मां दुर्गा का अवतार हो!
ममता की भण्डार हो तुम,
पर असुरों के लिए संहार हो!!
मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-१४/११/१९९९, रविवार,,रात ८ बजे
चंद्रपुर(महाराष्ट्र)
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