जब घूंघट मे सिमटती थी
नारी,
और पायल बजते थे पावों
मे !
सर पे बेंदी व हाथ मे कंगन,
जब दिल बसते थे गांवों
मे !!
धोती -कुर्ता -व पैजामे ,
सर पे पगड़ी व लम्बी मूंछे
थे !
आभा से झलकते थे मुखमंडल,
उनके आदर्श तो कितने
ऊंचे थे !!
यह चंद तश्वीर तो है ए भारत
की,
अब नया जमाना तो इंडिया
का है !
जब डिस्को-डिजी पे थिरकते हों कदम,
तो यह कमाल बिंदीया का है
!!
चारों तरफ़ है लूट -पाट,
और भ्रष्टाचार चरम पर है !
अंग प्रदर्शन अंग्रेजों
जैसा,
बेहयाई तो कदम-कदम पर है !!
भारत की प्रतीष्ठा लगा दांव
पर,
लीडर जेबों को भरते हैं !
झूठा भारत का जय बुलवाकर,
इंडियन होने का दम वे भरते
हैं !!
अब नया जमाना तो.........
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१९/०९/१९९९,
रविवार,समय-दोपहर-२.४० बजे
चंद्रपुर (महाराष्ट्र)
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