Wednesday 28 September 2011

रो रहा है भारत आज दर्द से


रो रहा है भारत आज दर्द से,
हम सब के अत्याचारों से !
वेदना है इसकी नस-नस मे,
हम सब के तीब्र प्रहारों से !!

बे-हिसाब भूमि का दोहन कर,
अन्धा-धुन्ध पेड़ों को हम काट रहे !
नदियों में गन्दगी फ़ैलाकर,
हम उनको कचरों से पाट रहे !!

फ़लों के बागों से मुंह फ़ेरकर,
अब हम कांटों का झाड़ लगाते हैं !
जंगली जीवों को मार-मार कर,
हम अपनी भूख मिटाते हैं !!

परमाणु बिस्फोटों को कर के हम,
गर्मी की तीब्रता बढा़ते हैं !
हरे जंगलों का सफाया कर हम,
फ़िर बादल के लिए आंसू बहाते हैं !!

लूट-पाट हत्यांए कर के हम,
लोगों मे दहशत फैलाते हैं !
दहेज के लिए अपनी बहुवों को,
जिंदा ही उन्हें जलाते हैं !!

कुर्सी के लिए हम लोगों मे,
नफरत का जहर उगाते हैं !
भारतीय संस्कॄति को भूल के हम,
विदेशी फैशन को भुनाते  हैं!!

गलत व्याख्या हम धर्मों का कर,
और वेदों पर दोष लगाते हैं !
क्रांतिकारियों को भुलाकर हम,
अपने को महान बताते हैं !!

अनेकों घोटाले कर के हम ,
भारत का खून पी रहे हैं !
इसको अन्दर से खोखला बनाके,
हम खूब मजे से जी रहे हैं !!

हमारे ऐसे   कृत्यों को देख -देख कर,
भारत आज रो रहा है !
अपने बहते आसूवों से,
हमारे पापों को धो रहा है !!
रो रहा है भारत आज दर्द से..............

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक -२१/०१/२०००, शुक्रवार,समय.४५ पी,एम.
चंद्रपुर(महाराष्ट्र)