Saturday 15 October 2011

खूब सजा है मा का मंदिर


खूब सजा है मा का मंदिर ,
लागे है अति न्यारा !
चम-चम-चमके मा का कलश ,
जो है सारे जहां से न्यारा !!

ऊंचे पर्वत पर मा बैठी ,
करके सिंह सवारी !
भक्तों को दरश दे रही है हसके ,
उसकी लीला है अति न्यारी !!

सूनी जिनकी मांग है उनकी ,
मा उन्हे मनचाहा वर देती !
लाल बिना जिनका सूना आंगन ,
मा उन्हे लाल-लाल कर देती !!

लाज बचाती है भक्तों की ,
जो श्रद्धा से उसे पुकारे !
दौड़ी चली आती है मैया ,
पल भर मे उसके द्वारे !!

मा के लिए जो इक बूंद आंसू ,
अपनी आंखों से बहाए !
उन भक्तों को गोद मे ले मा ,
अपने आंसू से नहलाए !!

अब मोहन पे कॄपा करो मा ,
है ये विपद का मारा !
मा अब इसे अपनी शरण मे ले लो ,
होगा बड़ा उपकार तुम्हारा !!

खूब सजा है मा का मंदिर,
लागे है अति प्यारा !
चम-चम-चमके मा का कलश ,
जो है सारे जहां से न्यारा !!

मोहन श्रीवास्तव  (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक -२४/०३/२००० , शुक्रवार ,सुबह १०.१० बजे ,

चंद्रपुर (महाराष्ट्र)

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