सब जीव तो अपने जैसे है,
उनको भी अपने जैसा मानो!
ईश्वर का अंश है उनमे भी,
उनको भी ईश्वर जैसा जानो!!
जिवों को सताना महापाप,
और हत्या से बड़ा कोई जुर्म नही!
भूल के लिए हो पश्चाताप,
और ईंसानियत से बड़ा कोइ धर्म नही!!
ईश्वर ने बनाया हम सब को,
वे जानवर बने, हम ईंसान बने!
पर उनकी हत्या करने से,
हम ईंसान से एक हैवान बने!!
मद्य-मांस का भक्षण कर,
क्यूं मानवता को कलंकित करते हो!
उन भोले-भाले जीवों के,
रक्त को क्युं तुम पिते हो!!
मांशाहार को छोड़ के भाई,
आवो शाकाहार को अपनाएं!
जिससे तन-मन- की शुद्धता बनी रहे,
और पाप के कलंक से हम बच जाएं!!
मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-०५/०१/२००१,शुक्रवार,शाम-४.४५ बजे,
चंद्रपुर(महाराष्ट्र)
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