मयखाने से निकलते ही मेरे,
लोगों ने कहा ये शराबी है !
कत्लखाने से कभी मै जब निकला,
लोगों ने कहा ये कसाई है !!
मुज़रा कि गली से मै जब गुजरा,
वे हमे कोठों का शौकिया बुलाने लगे !
कुछ बातों से जब मेरा दिल टूटा,
वे हमे ईश्क का रोग है बताने लगे !!
निकले जब हम जूए घर से,
लोगो ने ज़ुआरी कहा हमको !
जब उनकी शभावों मे हम नही बोले,
तो लोगों ने अनाड़ी कहा हमको !!
असलियत मेरा ना पता था उन्हे,
अटकलें वो तो रह-रह- के लगाते रहे !
अपना खोया नसीब था मै ढूढ़ता,
मुझे बदनाम नामों से वे बुलाते रहे !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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दिनांक- २०/०९/२०००,वुद्धवार सुबह १० बजे,
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