आई दिवाली दुल्हन बन कर,
घर -आंगन की हुई सफ़ाई !
खिड़किया -दरवाजे रंग-बिरंगे,
और दीवारों की हुई रंगाई !!
गली-मुहल्लों की हुई सफ़ाई,
लोगो के रस्ते साफ़ हुए !
पर सरकारी सड़कों के तो,
हाल और बेहाल हुए !!
गड्ढे जगह-जगह पर हैं,
जहा कमर टेढ़ी कर चलना पड़ता !
कहीं-कहीं गंदे पानी के जमाव,
जहा कचरों पर से गुजरना पड़ता !!
कई सरकारी दफ़्तरों मे केवल,
कागज के घोड़े दौड़ाए जाते !
बिना काम किए ही उनपे,
सड़कें,पुल व नालिया बनाए जाते !!
रोज दिवाली तो उन्हीं की रहती,
जिनके रिश्वतों से जेब भरे रहते !
मुंह मे दलाली का पान चबाकर,
जिनके ईमान सदा मरे रहते !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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दिनांक-२०/१०/१९९९९,वुद्धवार,शाम-०७.०५ बजे,
चंद्रपु
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