Saturday 15 October 2011

हम फ़ूल बन जाते हैं अंगारे


हम कली है एक ऐसे गुलशन के ,
जो प्यार से फूल बन जाते हैं !
नफ़रत से जो कोइ छुए हमे ,
उनको हम शूल बन जाते हैं !!

चम्पा - चमेली-गुलाब -मोगरा ,
हम सब एक ही पौधे मे खिलते हैं !
निले-पिले -लाल-गुलाबी,
हम कई रंगों मे मिलते हैं !!

गौरव शाली गाथा रहा है सदा ,
इस जहां मे अपने गुलशन का !
हम फूल बन जाते है अंगारे ,
जब समझे हमे कोई दुश्मन सा !!

खुशबू फैलाते इस जहां मे हम ,
और तितलियों को अपना रस देते !
रुक-रुक-कर चलती हवाओं मे ,
अपनी खुशबू कि हम महक देते !!

हम कभी खत्म नही होने वाले पौधे ,
हम और भी बढ़ते जाएंगे !
शांति के इस नीले आकाश मे ,
हम अपनी और छटा बिखराएंगे !!
शांति के इस नीले आकाश मे ,
हम अपनी और छटा बिखराएंगे......




मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक -२४/०३/२०००,शुक्रवार ,दोपहर-१२.०५ बजे ,
चंद्रपुर (महाराष्ट्र)


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