Monday 17 October 2011

पिया बिना जियरा नहि लागे


ॠतुएं बदली, मौसम बदला,
बिती होली-दिवाली !
पिया बिना ज़ियरा नाही लागे,
सूख गए होठों की लाली !!

जब से भए पिया परदेशी,
बीते बारह महिने !
नयना पिया दरश को तरसे,
मै घुट-घुट कर लगी हूं जीने !!

लिख-लिख पाती भेजूं उनको,
पर कोइ जवाब नहि आवे !
दिन तो जैसे-तैसे बीते,
पर ये बैरिनि रात सतावे !!

नींद नही आवे अंखियन मे,
मोर मनवा हुआ उदास है !
विरह मे मै तो पागल हो गई,
नही लगे भूख प्यास है !!

रिम-झिम गिरती बारिस की बूंदे,
ये तन पे पड़ते शोले है !
चांद-सितारे ऐसे लागे,
जैसे आग के कोई गोले है !!

कर के सोलह श्रंगार मै बैठी,
सेज सजाई फ़ूलों से !
इतने मे गए पिया मेरे,
मुझे छिपा लिए अपनें पलकों मे !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक -०६/११/२०००, सोमवार - शाम - .३० बजे,

चंद्रपुर(महाराष्ट्र)




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