Monday 17 October 2011

अल्पसंख्यक या हों बहुसंख्यक

अल्पसंख्यक या हो बहुसंख्यक,
वे सभी भारत माता के दुलारे हैं !
नई रोशनी इस जहां के वो,
वे ही सुरज-चांद सितारे हैं !!

पर राजनीति के कुछ नेता गण,
आज इन्हे आपस मे लड़ा रहे हैं !
अपने वोटों को बढ़ाने के लिए,
उनमे ये नफ़रत का जहर फ़ैला रहे हैं !!

मंहगाई की आग मे  इन्हे जलता देखकर,
इनके दिल मे दर्द नही होता !
गरीबी-अशिक्षा व बेकारी हटावो पर,
इनका ध्यान नही होता !!

लम्बे-चौड़े -लुभावने भाषण कर,
इन्हे खुब तालियां मिलती है !
कहते कुछ है,और करते कुछ है,
इन्हे खूब रबड़ी-मलाइयां मिलती है !!

दूर रहो ऐसे नेतावों से,
जो हममे आपस मे कटुता फ़ैलाते हैं !
जातियता का जहर घोलकर,
ये खुब पार्टियां मनाते हैं !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक - २५/१०/२०००,
वुद्धवार -सुबह-.३० बजे,

चंद्रपुर(महाराष्ट्र)


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