कब तक ऐसे ही सहते रहोगे,
उनके अत्याचारों को !
कब तक ऐसे यूं ही डरते रहोगे,
उन आततायियों के दुराचारों से !!
दिन -दहाड़े हत्याएं करके ,
वे खुले आम घूमते है !
अबलावों की ईज्जत लूट के वे,
मस्ती के साथ झुमते है !!
आज अत्याचार हुआ हम पर,
कल तुम पर भी वही दुहराएंगे !
एक-एक कर सब पर वे,
अपना आतंक मचाएंगे !!
अन्याय व अत्याचार को सहना,
ये वीरता नही कायरता है !
अपराधियों के सामने सर को झुकाना,
यह विनम्रता नही अराजकता है !!
एकता मे अपरिमित बल है,
आगे बढ़ो और मुकाबला करो !
इसकी उनको सजा दिला,
उनके आतंक को नष्ट करो !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-२८/१२/२०००,मंगलवार,रात्रि-०१ बजे,
चंद्रपुर(महाराष्ट्र)
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