आज ईद का है आलम
सभी सजे है जैसे शबनम
चारो तरफ़ खुशी है
कैसी ये हंसी है
सभी गले रहे है मिल
कितने हसीने दिल
आज कितना है इनमे प्यार
जैसे सावन की हो बहार
ये नन्हे-मुन्ने बच्चे
लगते है कितने अच्छे
इन्हे मिल गए बहाने
खुशी के नही ठिकाने
मै भी ईदगाह जाता
मिल के सभी से आता
पर ये दोनो मेरे पैर
मुझसे ये लेते बैर
मै कही जा न सकता
मै कही आ न सकता
मेरा ऐसा कहा नसीब
मै हूं कैसा बदनसीब
मेरा खुदा है मुझसे रूठा
मै हर चीज से हू टूटा
मै रात-दिन उसे पुकारूं
आकर मुझे उबारो
कैसी ये गरीबी
मेरी कितनी बदनसीबी
सभी हसते होंगे मुझ पर
ताने कसते होंगे हम पर
पर ये मिलन का आलम
मुझे हजार खुशिया देते..
मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-१७/४/१९९१
एन.टी.पी.सी. दादरी गाजियाबाद(उ.प्र.)
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