Saturday 19 November 2011

गजल(मेरी सोने कि चिड़िया तू है कंहा)


मेरी सोने की चिड़िया तू है कहां
दिन रात मै खोजा करता हू!
तुझे जब से देखा है हमने
तकदीर पे रोया करता हू!!
मेरी सोने की....

तेरी रेशमी बलो की वो घटा
तेरी रूप की कैसी वो थी छटा!
वो मेरी शबनम तू चली आ
तेरा ही नाम मै रटता हू!!
मेरी सोने कि....

हम अंजाने थे तुम्हारे लिए
आ जावो परी तुम प्यार लिए!
तेरी इक अदा पे मै मर गया
अब ना तड़पावो मेरी नूरजहा!!
मेरी सोने की...

तुमको कैसा वो साथी मिला
जैसे किसी को मिले स्वर्ण शिला
ये कैसा बिधि ने बनाया है
किसी को प्त्थर्तो किसी को हीरा!!
मेरी सोने की...

आंसू भी निकलते नही मेरे
हम जी नही सकते बिन तेरे!
मेरे जीवन का है आखिरी क्षण
आकर अपनी मुस्कान दिखा!!
मेरी सोने कि चिड़िया तू है कहा
दिन-रात मै खोजा करता हू!
तुझे जब से देखा है हमने
तकदीर पे रोया करता हूं!!

मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-११/५/१९९१ ,शनिवार,रात्रि ९.५० बजे,
एन.टी.पी.सी. दादरी ,गाजियाबाद (उ.प्र.)

No comments: