Saturday 19 November 2011

विश्वाश(ये बहुत दुख देते शैतान)


इस पॄथ्वी को कहते गोल
इस पर रहते तरह-तरह के लोग
अच्छे-बुरे -डाकू-चोर
ईमानदारी का पहने खोल
मुख मे राम बगल मे छूरी
दिन मे साधू रात को चोरी
सज्जन-दुर्जन की नही पहचान
मारे जाते नेक ईंषान
दुष्टॊ का यही व्यापार
देते एक और लेते हजार
इन पर जो करे विश्वाश
उसका करे ये सत्यानाश
ये उपर से भोले-भाले
पर इनके दिल होते है काले
मै भी हो जाता इनसे हैरान
ये बहुत दुख देते शैतान
ये है आज-कल के रावण
इनसे पाते है कष्ट अकारण
इन्हे केवल पैसो की चाह
ये चलते पाप की राह
इन्हे भी आ जए ग्यान
इनका हट जाए इससे ध्यान
बन जाए ये भले ईंषान

मोहन श्रीवास्तव
दिनांक- २८/४/१९९१, रविवार  शाम ४.१० बजे,
एन.टी.पी.सी. दादरी गाजियाबाद(उ.प्र.)

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