लूट लो चाहे जितनी खुली छूट है
राम नाम कि कोई कमी है नहीं !
चाहे जितना तुम पी लो अमॄत घूट है
राम दरबार मे इसकी कमी है नहीं !!
मन रे तू राम-नाम रट ले...
तु उस राम को रट ले रे बंदे
तेरा उद्धार हो जाएगा !
उसके नाम को रटते-रटते
मुंह मागी तू पाएगा !!
मन रे...
राम नाम की लूट मची है
लूट ले तू मेरे प्यारे !
राम -नाम के लिए रे बंदे
तोड़ दे बन्धन सारे !!
मन रे...
बचपन मे तू खेल गवाया
हुआ बड़ा तो पढ़ाई !
पढ़-लिख तू रास किया रे
माया मे बुढ़ापा बिताई !!
मन रे...
उम्र गवाई चोरी मे तु
बना तु अत्याचारी !
राम नाम की चोरी कर ले
बन जाए तु सदाचारी !!
मन रे....
राम नाम कि महिमा का
कोई कर न सके बखान !
बड़े-बड़े जो ॠषि मुनि है
वो करते है गुण-गान !!
मन रे...
तेरा कोई नही यहा पर
केवल वही सहारा !
राम-नाम को रट कर के तू
पा जाएगा किनारा !!
मन रे...
राम-नाम अति निर्मल है रे
उसमे कोई नही दाग !
मोहन कहे तू इसको भज ले
ये है राम -नाम का साग !!
मन रे तू राम-नाम रट ले...
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१४/५/१९९१ ,मंगलवार,प्रात: ६.१० बजे,
एन.टी.पी.सी. दादरी, गाजियाबाद (उ.प्र.)
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