Sunday 27 November 2011

जी रही हु इन पापियो के देश मे


जी रही हु इन पापियो के देश मे,
मुझे अपने पे रोना बहुत आ रहा!
ये कातिल छुपे सुन्दर वेश मे
इनका मरना बहुत ही निकट आ रहा!!

आज मै इनसे बदला चुकाउंगी सनम,
जो छिपे है साधू के वेश मे!
आज मर जाऊं,चाहे इनसे डरना नही,
जो रुके है सब मेरे देश मे!!
ये शराबी है सब,अत्याचारी है,
इनके ईमानो पर कोई भरोसा नही!
ये सभी मेरे उपर जुल्म किए,
इनके कामो का कोई भरोसा नही!!
ये गरीबो की बस्ती मे आग लगा
उस पर ये बनाते है सुन्दर महल!
उन भोले-भाले नर -नारी पर,
ढाते रहते है ये दिन रात है कहर!!
उन सब का बदला चुकाउंगी मै
बन कर के आज एक शोला!
आज मै तुम्हे जला दुंगी,
बन कर के आग का गोला!!
इनकी तरफ़ दारी जो भी करेगा
जाएगा वो काल के गाल मे!
आज मै छोड़ुंगी नही किसी को,
जिसने किया मुझे इस हाल मे!!
आज इनसे मै बदला....

मोहन श्रीवास्तव
दिनांक- २४/७/१९९१ ,वुद्धवार, शाम -५.१५ बजे,
एन.टी.पी.सी.दादरी ,गाजियाबाद (उ.प्र.)

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