Monday 21 November 2011

भजन(हे अम्बे-जगदम्बे तू रुठी कहा)

तु ही भक्ती,तू ही शक्ती,कण-कण मे तेरा निवास है !
मेरे मनोरथ पूरे कर दो,तु ही सबकी आश है !!

हे अम्बे-जगदम्बे तू रुठी कहां
तेरे द्वारे है सब कोई कब से खड़े !
हम  तेरे शरण मे है आए हुए
हम तेरे राह मे है कबसे पड़े !!
हे अम्बे...

मै तुम्हारी आराधना कर ना सकूं
म्रेरी मइया जी हम बालक अग्यानी है !
तुम जगत कि जगज्जननि हो मां अम्बे मेरी
हम कपटी-कुटिल और अभिमानी है !!
हे अम्बे...

मेरे अग्यान-अभिमान-आवेश को
दूर कर दो मेरे मन से इनको अभी !
हम तुम्हारी दया दृष्टि को चाहते
मइया तेरे सहारे है जीते सभी !!
हे अम्बे...

तुम रामा-रमा और शिवराम हो
तेरा सर्वत्र कण-कण मे वास है !
मातु जगज्जननी तुम ही कॄपा धाम हो
तिनों लोकों मे तू ही सबकी स्वाश है !!
हे अम्बे...

हे मां तुझको पुकारे कोई जहां
तुम दौड़ी चली आती हो उस जगह !
हे मा मै भी हू संकट मे कैसे घिरा
तुम रक्षा करो मा मेरी इस जगह  !!
हे अम्बे...

कितनी शर्मिली-भोली-सिधी-सादी हो
हसती रहती हो दिन-रात थकती नही !
सब पर इतनी कॄपा करती रहती हो तुम
चाहे कोई तेरा करे भक्ती नही !!
हे अम्बे...

हम तेरे चरण-रज को पाना चाहते
इक छोटी सी ये लालसा है मेरी !
जीवन के अन्तिम दिन मे भी
आखों के सामने हो मूरत तेरी !!
हे अम्बे....

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-//१९९१,बॄहस्पतिवार,
एन.टी.पी.सी.दादरी,गाजियाबाद (.प्र.)


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