बिन्ध्याचल की मां बिन्ध्यवासिनी करू मै तोहे प्रणाम !
इस दुखिया की लाज बचालो,इसके कर दो पुरे काम !!
मइया खोई कहा तु आज, हम तेरे द्वारे खड़े !
तोहे सब जगह ढूढ़े मातु, हम तेरे द्वारे खड़े !!
सिंह सवारी पर तु बिराजे,मा तु बर देने वाली !
बालक पुकारे कह कर तुझको,माँ दुर्गा जय काली !!
मेरे पास कुछ नही है माता,केवल फूलों का हार !
ध्वजा-नारियल का भी माता,मेरी भेट करो स्वीकार !!
कण-कण मे तेरा निवास है माता,हॄदय मे भक्तों के तु रहती !
दुखी जनों की मनोकामना,पुरी करती रहती !!
मन की गति को जानने वाली,कुछ छिपा नही है तुझसे !
हे मा मेरे अपराध क्षमा कर,जो कुछ भूल हुई हो हमसे !!
तेरे सहारे हम है माता,कोई नही है मेरा !
एक दुःखी की अरज को सुन लो,की हो कहा बसेरा !!
ढोल-नगाड़ा बजता रहता,मइया श्री तेरे धाम में !
चारो ओर से भीड़ जुटी है,विश्वाश है तेरे नाम में !!
मुझ दुखियारी दीन-हीन को,दे दो मा अब सहारा !
तेरे केवल भृकुटी मात्र से मिल जाएगा इसे किनारा !!
मइया खोई कहां तु आज.............
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
दिनांक-२६/७/१९९१,शुक्रवार,रात्रि १०.१५ बजे,
एन.टी.पी.सी.दादरी ,गाजियाबाद (उ.प्र.)
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