हम राम-नाम की माला ले के करते रहते है फ़ेरा
वो राम-कॄष्ण है मेरा,वो राम कॄष्ण है मेरा
हम राम नाम की ........................
उसके माथ पे मोर पंख है और गले मे हार
तन पे वो पिताम्बर डारे ,करता रहता है फ़ेरा
हम राम नाम..............
अपरम्पार है माया उसकी,और अनोखी लीला
पावों मे उसके पैजनीं सोहे,ऐसा है वो प्रभु मेरा
हम राम -नाम .................
जब-जब होती धरम की हानी,तब -तब वो यहां आता
सबको दुख से मुक्ति दिला कर, वो माला माल कर देता
हम राम नाम .......................
बड़े-बड़े जो ॠषि,मुनी हैं ,सबको उसने तारा
उसकी कॄपा से भव सागर से पा गये सभी किनारा
हम राम-नाम.................
ऐसा वो नटवर लाल वो मेरा,भक्तों के बस मे रहता
वो संकट को काटने वाला,सबकी लाज वो रखता
हम राम नाम की माला........................
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
दिनांक-२/९/१९९१,
सोमवार ,शाम ,५.१५ बजे,
एन.टी.पी.सी.दादरी ,गाजियाबाद ,(उ.प्र.)
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