Tuesday 4 October 2011

तेरी तश्वीर के सहारे हम जी लेंगे

तेरी तश्वीर के सहारे ,हम जी लेंगे !
दर्द यादों का, हंसते हुए हम पी लेंगे !!

इन आंखो मे हसी सी, तो ,कभी आती थी !
अब तो बस यादों मे तेरे,ये यहा रोते हैं !!

चाहे कितना भी सितम आए, हम सह लेते थे !
वक्त कैसा हो हम,हंसते हुए रह लेते थे !

देख के प्यार को , अपने तो वे जलते थे !
हममे नफ़रत की दीवार, खड़ी करते थे !!

कोई तूफ़ान ,उड़ा के यहा लाया है !
अब तो बस इसकी ही रज़ा से ,चलने होंगे !!

हमे मालूम नही,अब और कहां जाएंगे !
तेरी तश्वीर को, कब तक हम बचा पाएंगे !!

तेरी तश्वीर के सहारे ,हम जी लेंगे !
दर्द यादों का, हसते हुए हम पी लेंगे !!

तेरी तश्वीर के...........

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
तारीख-२५/०२/२००१, रविवार,शाम- .३० बजे,
थोप्पूर घाट, धर्म पुरी (तमिल नाडु)






पर शराब है सबसे बुरा नशा

कोई भी नशा है ठीक नही,
पर शराब है सबसे बुरा नशा !
कई मंज़रों को ढहते देखा है हमने,
जिनके दिल मे है शराब बसा !!

धन की बर्बादी पहले करते,
फ़िर तन की बर्बादी बाद मे !
चरित्र गिर जाते है उनके,
फ़िर रहते हर-पल पश्चाताप मे !!

ईमान बेचते देखा है हमने,
और सम्मान से समझौता कर लेते !
देखा है हमने ऐसों को,
जो पत्नी-बेटियों का भी सौदा कर लेते !!

चंद बातों को लेकर हमने,
अपनों का खून बहाते देखा है !
लिव्हर सड़ जाने से उनके,
तड़प कर मर जाते हुए देखा है !!

मदिरा के नशे मे कभी-कभी,
उन्हे अपनी आबरू लुटाते देखा है !
भीड़ भरे बाज़ारों मे,
उन्हे अश्लीलता दिखाते देखा है !!

मत पियो शराब को तुम ऐसी,
जहां नफ़रत ही नफ़रत तुम्हे मिले !
विष के समान मदिरा पीकर,
जहां झूठी इज्जत तुम्हे मिले !!

कोइ भी नशा है ठीक नही.......

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
रचना की तारीख-१९/०२/२००१,दोपहर - १२.३५ बजे,

थोप्पूर घाट, धर्मपुरी,(तमिलनाडु)

पर हम कितने हत्यारे हैं

जीवों को खाना महापाप,
सभी जीवों को प्राण तो प्यारे हैं !
हम उन बे-कसूरों को मार-मार,
बन गए कितने हत्यारे है !!

देते है बहुत दान-दक्षीणा,
मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे मे !
परोपकार भी करते कभी-कभी,
पर हम कितने हत्यारे है !!

यदि हमे दर्द पहुंचाए कोई,
उठता दिल मे दर्द हमारे है !
हम अपनी जान बचा लेते,
पर हम कितने हत्यारे है !!

बगुला- भगत बन कर के हम,
जीवों का खून बहाते है !
मुख से करते राम-राम,
पर अंदर से हम हत्यारे है !!

ब्रत-उपवास को करते हम,
और देवों पर फ़ूल चढ़ाते है !
पर-जीवों का भक्षण करके,
हम बन गए कितने हत्यारे है !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
रचना की तारीख-१४/०१/२००१, वुद्धवार, सुबह-१०.५० बजे,
थोप्पूर घाट,धर्मपुरी,(तमिलनाडु)