तुम चार दिन के जीवन मे ,
नेकी के काम कर लो !
इस बिष भरे बदन को,
अमृत के रस से भर लो !!
मुश्किल से ये मिली है,
अनमोल तेरी काया !
अब तक हिसाब कर लो,
क्या खोया क्या है पाया !!
दुष्कर्म यदि किया है,
तो तुमने बहुत है खोया !
सत्कर्म यदि किया है,
तो तुमने बहुत है पाया !!
वाणी मिली जो तुमको,
तो मिठे स्वर से बोलो !
आखों मे तुम तो अपनी ,
दृष्टि दया की कर लो !!
कानों से तुम तो अपने,
अच्छी सी बातें सुन लो !
हाथों से तुम तो अपने,
श्रद्धा से दान कर लो !!
पावों को तुम तो अपने ,
सन्मार्ग पर बढ़ावो !
मन को तुम तो अपने,
प्रभु ध्यान मे लगावो !!
मोहन की प्रार्थना है,
कुछ नाम कर के जावो !
दुनिया से जावो तुम तो,
सत्काम कर के जावो !!
तुम चार दिन के जीवन मे.........
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२३/४/१९९९,शुक्रवार,७.१० बजे,चन्द्रपुर महा.
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