रिमझिम-रिमझिम बारिस आई,
बच्चे खेलें सारे !
जान-बुझकर गिले होते,
वो तो सबके दुलारे !!
पैर फ़िसलकर गिरते हैं वो,
हंसी -ठहाका करते !
उनकी ओतली -तोतली बोली,
सभी का मन है हरते !!
बच्चे जो भगवान रूप हैं,
भेद-भाव नही इनमे !
इनके लिए तो सभी बराबर,
राग-द्वेश नही इनमे !!
शिक्षा लेनी है तो इनसे
ले लो,
हम क्युं आपस मे हैं लड़ते
!
प्यार -मुहब्बत छोड़ के क्युं हम,
झगड़े की राह पकड़ते !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
२६/६/१९९९, शनिवार,
रात्रि ९.१५ बजे,
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