दुश्मन ने हमला बोला था हम पर,
जवाब हम सब दे रहे थे !
अपने शहीदों के प्राणों का बदला,
कदम-कदम पे ले रहे थे !!
तब देश एक था इस मुद्दे पर,
इससे खुशी और क्या होगा !
पर ऐसा नौबत आया क्यों,
यह उस सरकार को जवाब देना था !!
इतने दिनो से घुसपैठिए,
हमारी सीमा मे घुस आए थे !
पर अचरज तो इस बात का था,
कि सरकार के लोग अन्जान से थे !!
बेखबर सो रहे थे हम ,
दुश्मन आगे को बढ़ रहे थे !
देश की चिन्ता नही थी हमे,
हम तो कुर्सी के लिए लड़ रहे थे !!
पर संभल गए थे हम वक्त पर ही,
और दुश्मन को धूल चटाये थे !
जोशों से भरे हमारे सैनिक,
उन्हें मौत की नींद सुलाये थे !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
rewised 22-10-2013
pune.maharashtra.
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