Tuesday 13 March 2012

कोई सहारा चाहिए

ईन्षान की चाहत की, कोई सीमा नही होती!
एक पाएगा तो दुसरे पे, आश है उसकी!!

कश्ती डुबती हो और, भवंर मे पड़े हों जब!
कोई सहारा चाहिए हमे,खतरे मे पड़े हों जब!!

थिरकन हो जब भी पावों मे हिम्मत न हारिए!
बादलों की तरह गगन मे, अपने को उड़ाइए!!

सुरज तो खुद ही सुरज है,उसे किरणों की आश नही!
किरनें है दास उसकी,वह किरणों का दास नही!!

दिन-रात,सुबह-शाम,उगना और डूबना!
चलता ही रहेगा,जिने-मरने का सिलसिला!!

मोहन श्रीवास्तव
१६/६/१९९९,वुद्धवार,सुबह ६ बजे,
चन्द्रपुर महा.

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