गर्मी की व्याकुलता से,
लोगों का हाल बेहाल हुआ !
तपती धूप मे लोगों का,
चेहरा सुर्ख सा लाल हुआ !!
होंठ सुख गये लोगों के,
चेहरे मुर्झाए हैं लगते !
इस महाताप की पिड़ा से,
अपने भी कुम्हलाए लगते !!
ए.सी. कूलर की हवा मे हैं जब तक,
तब तक दूर है गरमी उनसे !
बाहर निकलते ही उनके,
गर्मी प्यार करने को आतुर उनसे !!
सुर्योदय से सुर्यास्त तक,
लोग बिकल हो जाते हैं !
इस बेशर्मी गर्मी से लोग,
अपने कपड़ों से मुह को छिपाते है !!
पानी-छांव व ठंडी हवाएं,
जो इनका ही सहारा है !
जिनको ये तीनों नही सुलभ,
वो तो गर्मी का मारा है !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
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