तेरे तन-वदन से खुशुबू,
फ़ूलों की आ रही है !
सुरत तुम्हारी मेरे ,
दिल मे समा रही है !!
नयनों के बाण तेरे,
दिल मे जो लग रही है !
सोई हुई पिपासा,
मानो ये जग रही है !!
ठंडी हवाएं ये जो,
शोले बरस रहे हैं !
नयना ये मेरे दिलकश,
कब से तरस रहे हैं !!
अदाएं तुम्हारी मेरे,
मन को है भा रही है !
तुमसे मिलन की आशा,
बढ़ती ही जा रही है !!
मेरी आगोश मे तुम आवो,
क्युं नखरे दिखा रही हो !
रह-रह के हमपे क्युं तुम,
बिजली गिरा रही हो !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
१७/७/१९९९,सुबह,२ बजे,
चन्द्रपुर महा.
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