आ जावो मेरे बादल,
तेरा ही सहारा है ।
तपती हुई गर्मी है,
इसिलिये पुकारा है ॥
सब जीव तो गर्मी से,
दिन रात तप रहे हैं ।
बारिस की आश मे देखो,
पल-पल तो जी रहे हैं ॥
धरती है सुख रही,
पानी बिन सब व्याकुल ।
कहीं पीने को पानी नही,
कहीं प्यास से सब आकुल ॥
पानी के लिये देखो,
आपस मे लड़ते हैं ।
अब बरसो हे बादल,
हम विनती करते हैं ॥
तन से देखो सबके,
बहता तो पसीना है ।
बेदर्दी गर्मी से ,
मुश्किल तो जीना है ॥
घनघोर घटा घेरो,
जी भर के तुम बरसो ।
बारिस की बूंदों से,
सब को तो सुखी कर दो ॥
आ जावो मेरे बादल,
तेरा ही सहारा है ।
तपती हुई गर्मी है,
इसिलिये पुकारा है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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दिनांक-२७-५-२०१३,सोमवार,
रात्रि ९.३० बजे,पुणे,महा.