कभी किसी के दिल को, दुखाना न चाहिये ।
बे-वजह किसी को, सताना न चाहिये ॥
कभी घमंड किसी का,करना न चाहिये ।
मुश्किलों से कभी हमे ,डरना न चाहिये ॥
दुःख मे धैर्यता को,खोना न चाहिये ।
सुख की याद मे ,कभी रोना न चाहिये ॥
पैसों की बात रिश्तों मे ,आना न चाहिये ।
जिसका लिया है कर्ज़ ,भुलाना न चाहिये ॥
धन्धे या व्यापार मे,साझा न चाहिये ।
पति-पत्नी के प्यार मे ,कोई राधा न चाहिये ॥
कभी किसी के उपकार को, भुलाना न चाहिये ।
बिन बुलाये किसी के द्वार पे, जाना न चाहिये ॥
मां -बाप को कभी भी, भुलाना न चाहिये ।
ससुराल मे बार-बार, जाना न चाहिये ॥
बेटी जब सयान हो, घुमाना न चाहिये ।
शराबियों को घर मे ,बुलाना न चाहिये ॥
झूठी शान कर्ज़ से, दिखाना न चाहिये ।
मर्ज़ को बैद्य से, छिपाना न चाहिये ॥
लोगों का देख करके शौक, करना न चाहिये ।
सत्य से कभी भी ,डरना न चाहिये ॥
आत्म हत्या कभी हमे ,करना न चाहिये ।
जिंदगी संघर्ष है, लड़ना ही चाहिये ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
रचनांकन तिथि-१३-०५-२०१३,सोमवार,
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