जीवन की गाड़ी थम जाती,
और खुशियों का बाग है जल जाता ।
जब किसी बेचारी नारी का,
अपना सुहाग है उजड़ जाता ॥
जीवन साथी था जब तक,
उसका अपना अलग संसार था ।
पर अपना साथी
बिछुड़ते ही,
उस पर तो बज्र प्रहार था ॥
विधवा हो गई तो कुसूर किसका,
जिसका बिधि ने सब कुछ लूट लिया ।
और हम उनसे कभी करते हैं नफरत,
जैसे हमने हो अमृत का घूंट पिया ॥
जो दुःख की अगन मे है जल रही,
उससे बुरा हमारा क्या होगा ।
जो पिया बिना है तड़प रही,
उससे नुकसान हमारा क्या होगा ॥
हमें ऐसे विधवा व बेसहारों को,
हर जगह सम्मान देना होगा ।
जिससे वे और दुःखी न हों,
हमे वही काम करना होगा ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
२४-४-२०१३,बुद्धवार,३.३० दोपहर,
पुणे.महा.
2 comments:
NICE POEM !
राकेश श्रीवास्तव जी,
आप का दिल से आभार
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