Saturday 4 May 2013

विधवा हो गई तो कसूर किसका

जीवन की गाड़ी थम जाती,
और खुशियों का बाग है जल जाता
जब किसी बेचारी नारी का,
अपना सुहाग है उजड़ जाता

जीवन साथी था जब तक,
उसका अपना अलग संसार था
पर अपना साथी  बिछुड़ते ही,
उस पर तो बज्र प्रहार था

विधवा हो गई तो कुसूर किसका,
जिसका बिधि ने सब कुछ लूट लिया
और हम उनसे कभी करते हैं नफरत,
जैसे हमने हो अमृत का घूंट पिया

जो दुःख की अगन मे है जल रही,
उससे बुरा हमारा क्या होगा
जो पिया बिना है तड़प रही,
उससे नुकसान हमारा क्या होगा

हमें ऐसे विधवा बेसहारों को,
हर जगह सम्मान देना होगा
जिससे वे और दुःखी हों,
हमे वही काम करना होगा

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
२४--२०१३,बुद्धवार,.३० दोपहर,

पुणे.महा.



 

2 comments:

RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' said...

NICE POEM !

Mohan Srivastav poet said...

राकेश श्रीवास्तव जी,
आप का दिल से आभार