संत सदा से रहे हैं इस धरा पे,
और आगे भविष्य़ मे रहेंगे भी ।
उनके ही आशिर्वचनों से,
हम फूल और फल रहे हैं सभी ॥
पर आज के संतों को देखो,
वे अपनी खुब तिजोरी भर रहे हैं ।
और काम-वासना मे अंधे हो,
संतों के नाम को कलंकित कर रहे हैं ॥
गृहस्थ आश्रम वाले तो,
बेचारे कंगाल हो रहे हैं ।
पर संत,पादरी,मुल्ला अब,
खुब मालामाल हो रहे हैं ॥
यदि सच्चे अर्थों मे कोई संत है तो,
उसे काम-माल की जरुरत क्यों ।
धन-दौलत-परिवार व बंग्ला,
उन्हें भौतिक सुख की जरुरत क्यों ॥
पाप कर्म कोई भी करे,
पर पाप का घड़ा तो फूटता ही है ।
इनके ऐसे कृत्यों को देख-देख कर,
लोगों का दिल तो टुटता ही है ॥
पर आज के इस परिवेश मे भी,
बहुत संत ऐसे भी हैं ।
जिन्हें काम-दाम की चाह नही,
और उनसे आशिर्वाद हमें मिलते भी हैं ॥
और उनसे आशिर्वाद हमें मिलते भी हैं .......
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
03-09-2013,tuesday,1pm,
pune,maharashtra.
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