Sunday 8 September 2013

बिन घरनी घर भूत का डेरा

बिन घरनी घर, भूत का डेरा,
ये झूठ नही, सच्चाई है ।
पत्नी के घर मे, नही रहने से,
तो उसकी याद ,,बहुत ही सताती है ॥

पति-पत्नी मे होते तकरार बहुत,
इससे रिश्तों मे ,प्यार और बढ़ता है ।
तू-तू ,मै-मै, जब होता है कभी,
तो आदमी, प्यार और करता है ॥

सच माने तो वह केवल ,पत्नी ही नही,
वो हमारे जीवन की ,अधिकारी है ।
रखती है हमारा, ध्यान सदा,
हम भी उसके, आभारी हैं ॥

ये भी कभी भी, न भुलें,
कि उसकी रूप की, तीन निशानी है ।
सुबह मां और दिन मे है बहन ,
और रात को वो, दिलजानी है ॥

पर गृहिणी यदि, समझदार मिली,
तो उस घर मे, खुशियां ही खुशियां हैं ।
पर कहीं अगर, दुखदायी सी मिली,
तो वहां बस दुख की ही, केवल बगिया  है ॥

बिन घरनी घर, भूत का डेरा....

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
२४--२०१३,बुद्धवार,११.२० बजे,

पुणे, महा.

No comments: