Tuesday 11 February 2014

बसंत ऋतु ( बिन सजनी कैसा बसंत )

ये तो बसंत ऋतु का मौसम,
बिरहा के मन मे आग लगाये
दिन तो जैसे-तैसे कट जाता,
पर बैरिनि रात सताये

हरे-भरे ये बाग-बगीचे,
और मदमस्त आम की अमराई
गेहूं की हरी-हरी बाली,
जिसमें मटर की लता है उलझाई

हरे-हरे ये चने की खेती,
फूली सरसो दिल को भाये
पक्षियों की टोली कलरव करती,
और कोयल मधुर गीत मे है गाये

सबको मस्त हुआ देखकर,
महुआ रह-रह के ललचाये
चम्पारानी के फूलों की ओर,
गुलाबराज जी अपनी डाल बढ़ाये

जोड़ों का तो मन प्रसन्न है,
सब मन ही मन मुस्कायें
पर बिरहा का तो मन उदास है,
ये बसंत ना उसे सुहाये
पर बिरहा का तो मन उदास है,
ये बसंत ना उसे सुहाये.....

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
10-02-2014,Monday,05:15pm,(749)

Pune,M.H.



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