Wednesday 4 April 2018

''इन जुल्फों के लहराने से"

इन जुल्फों के लहराने से ,कहीं मैं भटक न जाऊं |  
नज़रों का जाम पीके, कहीं मैं बहक न जाऊं      ||
इन जुल्फों के लहराने से........ 
 
नजदीक जैसे आग के,गलता है कोई मोम  | 
तेरे हुश्न के शोले से , कहीं मैं धधक न जाऊं || 
 इन जुल्फों के लहराने से........

अमराई गुनगुनाती  है,कोयल का तरन्नुम |
 पाजेब की रुनझुन से, कहीं मैं चहक न जाऊं || 
 इन जुल्फों के लहराने से........ 

बादल में ज्यों बिजली के,चमकने का असर हो | 
झुमके के पेंच में तेरे  ,कहीं मैं अटक न जाऊं    || 

इन जुल्फों के लहराने से........
खुश्बू घुली हवा में ज्यों,फूलों की छुअन से  | 
नाजुक तेरे अहसास से ,कहीं मैं महक न जाऊं || 

इन जुल्फों के लहराने से........
बहकर बयार बांवरा, छलकाए ज्यों  जज्बात   | 
मुझको संभालो आखों में ,कहीं मैं छलक न जाऊं || 

 
इन जुल्फों के लहराने से ,कहीं मैं भटक न जाऊं |  
नज़रों का जाम पीके, कहीं मैं बहक न जाऊं      ||




 मोहन श्रीवास्तव ( कवि )
रचना क्रमांक (1066)